सामुदायिक विकेन्द्रित जल प्रबंधन को आगे रखकर, समाज को सम्मान सहित जिम्मेदारी और हकदारी देकर काम करना होगा।

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सामुदायिक विकेन्द्रित जल प्रबंधन को आगे रखकर, समाज को सम्मान सहित जिम्मेदारी और हकदारी देकर काम करना होगा।

सामुदायिक विकेन्द्रित जल प्रबंधन को आगे रखकर, समाज को सम्मान सहित जिम्मेदारी और हकदारी देकर काम करना होगा।

दिनांक 2,3 जनवरी 2024


2 जनवरी 2024 को यात्रा तरुण आश्रम, भीकमपुरा से देर रात बागुमारा, सूरत गुजरात पहुंची। यहां से 3 जनवरी को यात्रा सरभोन हाई स्कूल, भुवासन आश्रम और उका तरसाडिया विश्वविद्यालय में रही। यहां जलपुरुष राजेन्द्र सिंह जी ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों का उद्घाटन किया और मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए। 

इन कार्यक्रमों में जलपुरुष राजेन्द्र सिंह जी ने कहा कि, भारत को यदि पानीदार बनाना है, तो सामुदायिक विकेन्द्रित जल प्रबंधन को आगे रखकर, समाज को सम्मान सहित जिम्मेदारी और हकदारी देकर काम करना होगा। नही तो जिस तरह से पिछले सालों में अफ्रीकन, सीरिया, सैनेगल आदि देशों के लोग उजड़ रहे है। इन देशों से उजड़ने वाले लोगों को जलवायु परिवर्तन शरणार्थी कहा जाता है। भारत के लोगों को अभी जलवायु परिवर्तन शरणार्थी नहीं कहा जाता है। लेकिन जिस तरह से हम आगे बढ़ रहे है? उससे अगले सात सालों में भारत बेपानी हो सकता है? भारत यदि बेपानी होकर उजड़ेगा तो, उसे भी जलवायु परिवर्तन शरणार्थी कहा जायेगा। यह भारत के लिए बहुत अपमानजनिक स्थिति होगी। इसलिए भारत को यदि पानीदार बनने पर विचार करना है, तो हमें सब कुछ छोड़ कर, बादलों से बरसने वाली हर बूँद को धरती के पेट में भरना और सूरज की रोशनी से बचाना होगा।’ ‘जितना जब जरूरी हो, उतना पानी को निकालकर जीवन चलाना होगा।’ इस अनुशासन के साथ हमें आगे बढ़ना होगा। एक तरफ हम जल का संरक्षण करें और दूसरी तरफ हम सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन के द्वारा भारत के भू-जल के भंडारों को भरने का काम करना चाहिए। इसके लिए एक जल साक्षरता का अभियान चलाना बहुत आवश्यक है।

आगे कहा कि, सफलताओं को पाना केवल बड़ा पैकज पाना नहीं है, बल्कि बेपानी लोगों को समझदार, पानीदार और इज्जतदार बनाना ही सफलता का माप-दण्ड माना जा सकता है। जिस प्रकार जो चंबल क्षेत्र के लोग लाचारी में ही हथियार उठाकर डरते-डराते और मरते-मारते थे। उनके जीवन में कभी सुख-चैन नहीं था, वे अपनों से भी स्वतन्त्रतापूर्वक नहीं मिल सकते थे। जब मुझे यह समझ में आया, तो दस्यु लोगों को पानी का अहसास कराकर नदी के दोनों तरफ के गांवों में लोगों को जल संरक्षण का कार्य शुरू करने हेतु तैयार कर लिया। यह अब पानी आने से बंदूक छोड़कर, किसानी करने लगे है। यह काम असंभव तो नहीं था, पर आसान भी नहीं था; बहुत कठिन था। लेकिन आपसी प्यार, विश्वास और समझ से यह काम संभव हो गया। ये लोग अपने श्रम से जोर लगाकर पत्थर में पानी ले आये। यहां उन्होंने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता, ‘‘मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है’’ को चरितार्थ कर दिखाया है। ऐसे कार्यों को पूरी दुनिया के करने की आवश्यकता है।

तरसाडिया विश्वविद्यालय के बाद यात्रा सूरत पहुंची। यहां भारत के जल शक्तिमंत्री श्री सी.आर.पाटिल जी के आवास पर जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने मुलाकात की। इस मुलाकात में जलपुरुष राजेंद्र सिंह जी ने जल साक्षरता अभियान पर जोर देते हुए कहा कि, महाराष्ट्र में चल रहा चला जानूया नदीला अभियान और जल साक्षरता योजना भारत के लिए एक मॉडल बन सकती है। इससे जुड़ा मेरा अनुभव भी बहुत अच्छा है। इस तरह के मॉडल को पूरे देश में अपनाना चाहिए। 

जलशक्ति मंत्री श्री सीआर पाटिल जी ने कहा कि, आप इसकी सम्पूर्ण जानकारी भेज दें, हम इसे प्रमुखता से लेंगे। 

तभी तरुण भारत संघ के अध्यक्ष जलपुरुष राजेंद्र सिंह जी ने जल साक्षरता के पूर्व निदेशक डॉ सुमंत पांडे से हसमुख पटेल और तरुण पटेल जी की बात कराकर, इस विषय में जानकारी उपलब्ध व्यवस्था करा दी।

इसके बाद यात्रा सूरत से बागुमारा के लिए रवाना हुई।

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